23 दिसंबर 2022

2023 में कुर्म द्वादशी कब है जाने सही समय और मुहूर्त व महत्व , कुर्म द्वादशी की कथा ,

 कुर्म द्वादशी की कथा ,2023 में कुर्म द्वादशी कब है 

03 जनवरी 2023  मंगलवार ✔


पुत्रदा एकादशी व्रत के दूसरे दिन पूर्व द्वादशी का व्रत होता है जो कि प्रतिवर्ष पौष  माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को किया जाता है विष्णु पुराण के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु ने कछुए का अवतार लिया था जिस कारण यह द्वादशी भगवान विष्णु के कूर्मरूप को समर्पित है श्री विष्णु रूप कूर्म स्वरूप की पूजा की जाती है मान्यता है कि जो कोई व्यक्ति कूर्म द्वादशी का व्रत विधि नियमों से करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है आप भी इस द्वादशी का व्रत रखते हैं तो व्रत कथा और पूजा विधि को पढ़कर अपना व्रत पूर्ण कर सकते हैं

भगवान विष्णु जी ने विश्व कल्याण और धर्म की रक्षा करने के लिए कूर्म अवतार धारण किया था जो इनक दूसरा अवतार था इस अवतार में भगवान श्री हरि जी ने कछुए के रूप में प्रकट हुए थ

जिस कारण यह है इसे कच्छप अवतार या कूर्म अवतार के नाम से जाना जाता है इस रूप का अवतार लेने के कारण देवता व दानवों के हाथों से समुंदर मंथन में सहायता करना था तब उन्होंने कहा था कि इस संसार में जो कोई स्त्री व पुरुष मेरे इस अवतार की पूजा श्रद्धा और प्रेम पूर्वक करेगा उसकी सभी मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होगी और इसके साथ ही हर प्रकार के कार्य में आपको सफलता प्राप्त होती है

भगवान विष्णु के इस अवतार की कथा और इस दिन पूजा करने की विधि 

पौराणिक कथा के अनुसार एक समय देवराज इंद्र ने अपनी शक्ति और ऐश्वर्य के अहंकार में आकर ऋषि दुर्वासा द्वारा दी गई बहुमूल्य माला का निरादर कर दिया था जिसके पश्चात देवराज इंद्र से कुपित होकर ऋषि दुर्वासा ने उन्हें श्राप दे दिया था ऋषि दुर्वासा के इस श्राप के कारण देवताओं ने अपना बल तेज और ऐश्वर्य सब कुछ खो दिया था इस स्थिति में देवता अत्यंत निर्बल हो गए थे देवताओं की ऐसी स्थिति देखकर असुरों ने देवताओं पर आक्रमण कर दिया था देवताओं को हरा कर देत्यराज बली ने स्वर्ग पर कब्जा जमा लिया था इस बीच तीनों लोकों में राजा बलि का राज्य स्थापित हो गया और चारों ओर हाहाकार त्राहि-त्राहि मच गई थी इस स्थिति में सभी देवता एकत्र होकर भगवान श्री हरि विष्णु के पास पहुंचे और अपनी सारी व्यथा बताई जिसके बाद भगवान विष्णु ने उन्हें समुद्र मंथन करके अमृत प्राप्त करने और उसका पान कर उन्हें अपनी कोई शक्तियां अर्जित करने का सुझाव दिया लेकिन यह कार्य इतना आसान नहीं था देवता अत्यंत निर्बल हो चुके थे अतः समुद्र मंथन करना उनके सामर्थ्य की बात नहीं थी इस समस्या का समाधान भी भगवान विष्णु ने निकाल लिया उन्होंने देवताओं से कहा कि वे  जाकर असुरों को अमृत व उस से प्राप्त होने वाले अमृत्व के विषय में बताएं वह उन्हें समुद्र मंथन करने के लिए किसी भी तरह से मना ले इसके बाद दोनों पक्ष मिलकर समुंद्र मंथन करें और उस से प्राप्त होने वाली मूल्यवान निधियों को आपस में बांट लें 

 देवताओं ने यह बात असुरों को बताई और असुरों को समुद्र मंथन करने के लिए राजी कर लिया इस विशाल कार्य को मंदर  पर्वत और नागराज वासुकी जोकि नागराज शेषनाग के छोटे भाई हैं के सहारे से ही किया जा सकता था जहां पर्वत को मथनी का डंडा और वासुकी को रस्सी के समान उपयोग किया गया 

 देवता और दानव मिलकर समुद्र का मंथन करने लगे जहां एक तरफ असुर थे और दूसरी तरफ देव थे लेकिन इस मंथन करने से एक घातक जहर निकलने लगा और जिससे घुटन होने लगी और सारी दुनिया पर खतरा आ गया लेकिन भगवान महादेव बचाव के लिए आए और उस जहर को पी लिया और अपने कंठ में उसे धारण किया जिससे उनका नीलकंठ नाम पड़ा मंथन जारी रहा लेकिन धीरे-धीरे पर्वत डूबने लगा तभी भगवान विष्णु ने कूर्म अवतार अथवा कछुआ के रूप में प्रकट हुए  और एक विशाल कछुए का अवतार लिया ताकि अपने पीठ पर पहाड़ को उठा सकें उस कछुए के पीठ का व्यास 100000 योजन था कामधेनु जैसे अन्य पुरस्कार समुद्र से प्रकट हुए और धनवंतरी अपने हाथों में कलश अमृत कलश के साथ प्रकट हुए इस प्रकार भगवान का अवतार हुआ

Date and Time

द्वादशी तिथि  का प्रारम्भ 2 जनवरी 2023 सोमवार  08 : 23 शाम को 

द्वादशी तिथि की समाप्ति 3 जनवरी 2023  मंगलवार 10 : 01 रात्रि तक 

 कुर्म द्वादशी व्रत की पूजा विधि 

पूर्व द्वादशी व्रत के नियमों का प्रारंभ दशमी तिथि से ही हो जाता है 

दशमी के दिन प्रातः काल स्नान इत्यादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र       धारण कर लें 

पूरे दिन सात्विक भोजन और सात्विक आचरण का पालन करें 

एकादशी को प्रातः स्नान ध्यान करके पूरे दिन अन्य जल ग्रहण किए बिना ही व्रत रखना चाहिए संभव ना हो तो इस व्रत में जल और फल ग्रहण कर सकते हैं 

अगले दिन पूर्व द्वादशी के दिन भगवान कूर्म का पूजन करें 

भगवान कूर्म के पूजन के बाद प्रसाद ग्रहण करके व्रत का पारण करें 

इस दिन मंदिरों में विशेष पूजा अनुष्ठान और अभिषेक आदि का आयोजन किया जाता है 

भगवान को चंदन फल फूल चढ़ाएं व मिष्ठान का भोग अर्पित करें 

पूजन के समय श्लोक को वह मंत्रों का जाप करें 

भगवान कुर्म की आराधना उपासना करें और 

पूजन के बघवा बाद भगवान की आरती उतारे













22 दिसंबर 2022

2023 में पौष पुत्रदा एकादशी कब है ,पुत्रदा एकादशी व्रत कथा , व्रत में क्या खाना चाहिए

2023 में पौष पुत्रदा एकादशी कब है? जाने सही समय और पूजन की विधि  Paush Putrda Ekadashi 2023

नए वर्ष 2023 की शुरुआत पुत्रदा एकादशी के साथ होने जा रही है पौष माह की पुत्रदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है विशेष रूप से इस दिन संतान प्राप्ति के लिए पूजा की जाती है मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत करने वाले जातकों को जीवन भर सुख की प्राप्ति होती है और मरणोपरांत मोक्ष मिलता है क्योंकि व्रतों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण व्रत एकादशी का माना जाता है 

एकादशी का नियमित रूप से व्रत रखने से मन की चंचलता खत्म हो जाती है व्यक्ति को धन और आरोग्य की प्राप्ति होती है पौष  माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी होती है इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है इस माह की एकादशी बड़ी ही फलदाई मानी जाती है क्योंकि इस व्रत को रखने से व्यक्ति की संतान संबंधी हर चिंता और समस्या का निवारण हो जाता है 



वर्ष 2023 में पौष माह की पुत्रदा एकादशी 2 जनवरी 2023 को मनाई जाएगी ऐसी मान्यता है की इस एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को जीवन भर सुख की प्राप्ति होती है

 पुत्रदा एकादशी का सही समय व् मुहूर्त 

 पंचांग की बात माने तो 2 जनवरी 2023 को पुत्रदा एकादशी मनाई जाएगी यह एकादशी उदया तिथि है इस एकादशी  की शुरुआत 1 जनवरी 2023 को शाम को 7:11 पर होगी और इसका समापन 2 जनवरी 2023 को शाम 8:30 पर होगा यदि इसका पारण करने की बात करें तो 3 जनवरी 2023 को सुबह 7:12 से 9:26 तक रहेगा 

जो व्यक्ति पुत्रदा एकादशी का व्रत रखते हैं उन लोगों को चाहिए कि वह लोग दशमी तिथि को सात्विक भोजन ही ग्रहण करना शुरू करें इसके अलावा व्रत करने वाले व्यक्ति को संयम और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए अगले दिन व्रत शुरू करने के लिए सुबह जल्दी उठकर स्नान करके व्रत का संकल्प कर ले और भगवान विष्णु जी का ध्यान करें गंगाजल ,तुलसी पत्र, फूल, पंचामृत से भगवान विष्णु की आराधना करें  इस व्रत को रखने वाली महिला या पुरुष निर्जला एकादशी का व्रत करें और शाम को दीपक जलाने के बाद फलाहार कर सकते हैं व्रत के अगले दिन  किसी योग्य ब्राह्मण व्यक्ति या किसी जरूरतमंद को भोजन कराना चाहिए और दान दक्षिणा देनी चाहिए इसके बाद ही व्रत खोलें 

यदि संतान प्राप्त करना चाहते हैं तो

कुछ उपाय ऐसे हैं जिनको करके संतान प्राप्ति की जा सकती है 

1. सबसे पहले पति पत्नी संतान प्राप्ति के लिए गोपाल सहस्त्रनाम का पाठ करें और मंत्र जाप करें 

2.सुबह जल्दी उठकर स्नान करके पति पत्नी एक साथ भगवान श्रीकृष्ण की उपासना करें बाल गोपाल     को लाल पीले फूल तुलसी पत्र और पंचामृत समर्पित करें 

3.मंत्र का जाप करने और पूजा खत्म करने के बाद प्रसाद ग्रहण करें 

4.इसी प्रकार जरूरतमंदों को दान दक्षिणा दें और उन्हें भोजन अवश्य ही कराएं उनके आशीर्वाद से संतान की प्राप्ति संभव हो सकती है

एकादशी तिथि को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए और कौन-कौन सी चीजें खानी चाहिए कौन सी चीजें नहीं खानी चाहिए 

एकादशी के दिन यथाशक्ति अन्नदान करें किंतु स्वयं किसी अन्य का दिया हुआ अन्न  ग्रहण न करें 

किसी कारणवश निराहार रहकर व्रत करना संभव न हो तो एक समय एक बार भोजन करें

 एकादशी व्रत में शकरकंद कुट्टू आलू साबूदाना नारियल काली मिर्च सेंधा नमक दूध बादाम अदरक चीनी आदि पदार्थ खाने में शामिल कर सकते हैं 

एकादशी का उपवास रखने वालों को दशमी के दिन मांस लहसुन प्याज मसूर की दाल आदि निषेध वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए 

एकादशी के दिन प्रातः लकड़ी का दातुन ना करें इस दिन वृक्ष से पत्ते तोड़ना वर्जित है अतः स्वयं  गिरा हुआ पता लेकर सेवन करें 

नींबू जामुन या आम के पत्ते लेकर चबा ले और अंगुली से कंठ साफ करें यदि संभव न हो तो पानी से 12 बार कुल्ले करे 

 एकादशी के दिन व्रत धारी व्यक्ति को गाजर शलजम गोभी पालक इत्यादि का सेवन नहीं करना चाहिए 

एकादशी पर श्री विष्णु जी की पूजा में मीठा पान चढ़ाया जाता है लेकिन इस दिन पान खाना भी वर्जित है 

फलों में केला आम अंगूर बादाम पिस्ता इत्यादि अमृत फलों का सेवन करें 

सूखे मेवे जैसे बदाम पिस्ता इत्यादि का सेवन किया जा सकता है 

एकादशी तिथि पर जो बैंगन और सेम फली नहीं खानी चाहिए इसमें सात्विक भोजन ग्रहण करें 

मांस मदिरा या अन्य कोई भी नशीले पदार्थ का सेवन नहीं करना चाहिए 

प्रत्येक वस्तु भगवान जी को भोग लगाकर तुलसीदल छोड़कर ग्रहण करना चाहिए

आइए जानते हैं इस व्रत से जुडी एक कथा 

किसी समय भद्रावती नगर में राजा सुकेतु का राज्य था उसकी पत्नी का नाम शेव्या था संतान नहीं होने के कारण दोनों पति पत्नी दुखी रहते एक  दिन राजा और रानी अपने मंत्री को अपना सारा राज्य देकर वन में चले गए इस दौरान उनके मन में आत्महत्या करने का विचार आया लेकिन उसी समय राजा को यह बोध हुआ की आत्महत्या एक बहुत बड़ा पाप है इसी दौरान उन्हें वेद पाठ के स्वर सुनाई दिए और वे उसी दिशा में बढ़ते चले गए साधुओं के पास पहुंचने पर उन्हें पुत्रदा एकादशी के व्रत का महत्व पता चला इसके बाद दोनों पति पत्नी ने पुत्रदा एकादशी का व्रत किया और इसके प्रभाव से उन्हें संतान की प्राप्ति हुई इसके बाद से ही पौष माह के पुत्रदा एकादशी का महत्व बढ़ने लगा 

वे दंपत्ति जो निसंतान है उन्हें श्रद्धा पूर्वक पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए











18 दिसंबर 2022

आरती ॐ जय जगदीश हरे

 





 जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे

 भक्त जनों के संकट, दास जनों के संकट 

क्षण  में दूर करें ओम जय ...................

 जो ध्यावे फल पावे दुख बिनसे मन का ,

सुख संपति घर आवे कष्ट मिटे तन का ओम जय .........

मात पिता तुम मेरे, शरण गहुँ मै किसकी 

तुम बिना और न दूजा आस करूं मै जिसकी  ओम जय .........

तुम पूर्ण परमात्मा तुम अंतर्यामी 

पार ब्रह्म परमेश्वर तुम सबके स्वामी  ओम जय .........

तुम करुणा के सागर तुम पालन करता 

मै मुर्ख खल कामी कृपा करो भर्ता  ओम जय .........

तुम हो एक अगोचर  सबके स्वामी प्राणपति 

किस विधि मिलूं दयालु    तुमको मैं कुमति ओम जय .........

दीन बंधू दुख हर्ता ठाकुर तुम मेरे 

अपने हाथ उठाओ अपने चरण लगाओ द्वार पड़ा मै तेरे ओम जय .........

विषय विकार मिटाओ पाप हरो देवा 

श्रद्धा  भक्ति बढाओ संतन की सेवा ओम जय .........

तन मन धन सब कुछ है तेरा 

तेरा तुझ को अर्पण क्या लागे मेरा ओम जय .........

श्री श्याम सुन्दर जी की आरती जो कोई नर  गावे

कहत शिवानन्द स्वामी मन वांछित फल पावे ओम जय .........

जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे

 भक्त जनों के संकट, दास जनों के संकट 

क्षण  में दूर करें ओम जय .......*............






14 दिसंबर 2022

Ganesh Chalisa श्री गणेश चालीसा | गणपति सदगुण सदन कविवर बदन कृपाल

 

श्री गणेश चालीसा 
|| दोहा ||
जय गणपति सदगुण सदन  कविवर बदन कृपाल 
विघ्न हरण मंगल करण जय जय गिरिजा लाल 
चोपाई 
 जय जय जय गणपति गणराजु  मंगल भरण करण शुभ काजू 
जय गज बदन सदन  सुखदाता  विश्व विनायक बुद्धि विधाता 
वक्र तुंड शुचि शुण्ड सुहावन तिलक त्रिपुंड भाल मन भावन 
राजत मणि मुक्तन उर माला  स्वर्ण मुकुट सिर नयन विशाला
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं  मोदक भोग सुगंधित फूलम  
सुंदर पितांबर तन साजित चरण पादुका मुनि मन राजित 
धनि  शिव सुवन षडानन भ्राता गौरी ललन  विश्व विख्याता 
रिद्धि सिद्धि तव चंवर सुधारे मूषक वाहन सोहत  द्वारे 
कहो जन्म शुभ कथा तुम्हारी  अति शुचि पावन मंगलकारी
 एक बार गिरी राजकुमारी पुत्र हेतु  तप कीन्हो भारी 
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा तब पहुँच्यो तुम धरी द्विज रूपा  
अतिथि के जानि  के गौरी सुखारी बहू विधि सेवा करी तुम्हारी  
अति प्रसन्न हो  तुम वर दीन्हा मातु पुत्र हित जो हो तप कीन्हा 
 मिलही पुत्र तुहि बुद्धि विशाला बिना गर्भ धारण  यही काला 
गणनायक  गुण ज्ञान निधाना पूजित प्रथम रूप भगवाना 
अस कहि अंतर्धान रुप हवई पलना पर बालक स्वरूप हवई 
बन शिशु रुदन जबहि तुम ठाना   लखी मुख सुख नहीं गौरी समाना 
सकल मगन सुख मंगल गांवही नभ ते सुरन सुमन बरसवाही
शंभू उमा बहु दान लुटावही सुर मुनि जन सूत देखन आवही 
लखी अति आनंद मंगल साजा देखन  भी आए शनि राजा
 निज अवगुण गनी  मन माहीं बालक देखन चाहत नाही  
गिरिजा कछु मन भेद बढायो  उत्सव मोर न शनि तुहि भायो
 कहने लगे शनि मन सकुचाई का करि हौ शिशु मोही देखाही 
नहीं  विश्वास उमा और भयहू शनी सों बालक देखन कह्यु 
पड़ते ही शनि दृग कोण प्रकाशा बालक सिर उड़ गयो अकाशा
 गिरिजा गिरीं विकल हो धरणी सो दुख दशा गयो नहीं वरनी
 हाहाकार मचा कैलाशा शनि किनहो लखि सुत का नाशा 
तुरत गरुड़ चढ़ी विष्णु सिधाए  काटि चक्र सौ गज सिर लाये 
बालक के धड़ ऊपर धारियो प्राण मंत्र पढ़ शंकर डारयो 
नाम गणेश शंभु तब किन्हें प्रथम  पूज्य बुद्धि निधि वर दीन्हे 
बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा पृथ्वी की प्रदक्षिणा लीन्हा  
चले षडानन भरम भुलाई रची बैठे तुम बुद्धि उपाई 
चरण मातु पितु के धरि लीन्हे  तिनके सात प्रदक्षिणा कीन्हें  
धन गणेश कह शिव हिय हरषे नभ  ते सुरन सुमन बहू बरसे 
तुम्हारी महिमा बद्धि बड़ाई शेष  सहस मुख सके न गाई 
 मैं मति हीन मलीन दुखारी करहूं कौन विधि विनय तुम्हारी
 भजत  राम सुंदर प्रभु दासा  लग  प्रयाग ककरा दुर्वासा 
अब प्रभु दया  दीन पर कीजे  अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजे
श्री  गणेश यह चालीसा पाठ करें धर ध्यान 
नित नव मंगल गृह बसै लगे जगत सन्मान 
सम्मत अपने सहस्त्र दश ऋषि पंचमी दिनेश 
पूर्ण चालीसा भयो मंगल मूर्ति गणेश
गणपति गणेश जी महाराज की जय 










12 दिसंबर 2022

हनुमान चालीसा | Hanuman Chalisa | Jai Hanuman Gyan Gun Saagar......

 


श्री गुरु चरण सरोज रज निज मन मुकरु सुधारि
बरनौ रघुवर विमल जसु जो दायक फल चारि |
बुधिहीन तनु जानि के सूमरों पवनकुमार 
बल बुधि विद्या देहु मोहि हरहु क्लेश विकार ||
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर , 
जय कपीस तिहुं लोक उजागर || 1

राम दूत अतुलित बल धामा , 

अंजनी पुत्र पवनसुत नामा ||2

महावीर विक्रम बजरंगी, 

कुमति निवार सुमति के संगी ||3

कंचन वरण विराज सुबेसा, 

कनन कुंडल  कुंचित केसा||4

 हाथ बज्र अरु ध्वजा विराजे, 

कांधे मूंज जनेऊ साजे ||5

शंकर सुवन केसरी  नंदन, 

तेज प्रताप महा जग वंदन ||6

विद्यावान गुनी अति चातुर, 

राम काज करिबे  को आतुर ||7

प्रभु चरित्र सुनवे को रसिया, 

राम लखन सीता मन बसिया8||

 सूक्ष्म रूप धरि  सियहि दिखावा  

विकट रूप धरि लंक जरावा || 9

भीम रूप धरि असुर सम्हारे 

 रामचंद्र के काज संवारे ||10

लाय संजीवन लखन जीआए, 

श्री रघुवीर हरषि उर लाये ||11

रघुपति किंही बहुत बड़ाई, 

तुम  मम प्रिय भरतही सम भाई ||12

सहस बदन तुम्हारो यश गावे, 

अस कही  श्रीपति कंठ  लगावे ||13

सनकादिक ब्रह्मादी मुनीशा, 

नारद सारद सहित अहिसा ||14

यम कुबेर दिकपाल जहां ते 

कवि कोविद कही  सके कहाँ ते 15 

  तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा

 राम मिलाय  राजपद दीन्हा ||16

तुम्हरो  मंत्र विभीषण माना 

लंकेश्वर भए सब जग जाना ||17

जुग सहस्त्र जोजन पर भानु 

लील्यो ताहि मधुर फल जानू ||18

प्रभु मुद्रिका  मेलि मुख माही, 

जलधि लाँघी गए अचरज नहीं ||19

दुर्गम काज जगत के जेते 

सुगम  अनुग्रह तुम्हरे  तेते  ||20

राम दुआरे तुम रखवारे, 

होत न आज्ञा  बिनु पैसारे ||21

सब सुख लहे तुम्हारी  सरना, 

तुम रक्षक काहू को डरना ||22

 आपन तेज सम्हारो आपै, 

तीनो लोक हांक ते काम्पे ||23

भूत पिशाच निकट नहीं आवे ,

महावीर जब नाम सुनावे,24

 नासे रोग हरे सब पीरा, 

जपत निरंतर  हनुमत बीरा,25

 संकट ते हनुमान छुडावे, 

मन क्रम वचन जो ध्यान लगावे  26

 सब पर राम तपस्वी राजा 

तिनके काज सकल तुम साजा 27

और मनोरथ जो कोई  लावे , 

सोई  अमित जीवन फल पावे 28

 चारों युग परताप  तुम्हारा,

 है  प्रसिद्ध जगत उजियारा  29

 साधु संत के तुम रखवारे 

असुर निकंदन राम दुलारे 30

अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता 

अस  बर दीन जानकी माता  31

 राम रसायन तुम्हरे  पासा 

सदा रहू  रघुपति के दासा 32

तुम्हरे  भजन राम को पावै,

जनम जनम के दुख बिसरावे 33

अंत काल रघुबर पुर जाई 

जहां जन्म हरी भक्त कहाई  34

और देवता चित्त ना धरई 

हनुमत सेई सर्व सुख करई 35

संकट कटे मिटे सब पीरा

 जो सुमिरे हनुमत बलबीरा 36

जय जय जय हनुमान गोसाई 

कृपा करहु  गुरुदेव की नाई  37

 जो सत बार पाठ कर कोई

छुटहि बंदी महा सुख होई 38

जो यह पढ़े हनुमान चालीसा ,

होय सिद्धि साखी गौरीसा 39

तुलसीदास सदा हरी चेरा 

कीजै नाथ हृदय महं डेरा 40

पवन तनय संकट हरण मंगल मूर्ति रुप 

राम लखन सीता सहित हृदय बसहू सुर भूप