कुर्म द्वादशी की कथा ,2023 में कुर्म द्वादशी कब है
03 जनवरी 2023 मंगलवार ✔
भगवान विष्णु जी ने विश्व कल्याण और धर्म की रक्षा करने के लिए कूर्म अवतार धारण किया था जो इनक दूसरा अवतार था इस अवतार में भगवान श्री हरि जी ने कछुए के रूप में प्रकट हुए थ
जिस कारण यह है इसे कच्छप अवतार या कूर्म अवतार के नाम से जाना जाता है इस रूप का अवतार लेने के कारण देवता व दानवों के हाथों से समुंदर मंथन में सहायता करना था तब उन्होंने कहा था कि इस संसार में जो कोई स्त्री व पुरुष मेरे इस अवतार की पूजा श्रद्धा और प्रेम पूर्वक करेगा उसकी सभी मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होगी और इसके साथ ही हर प्रकार के कार्य में आपको सफलता प्राप्त होती है
भगवान विष्णु के इस अवतार की कथा और इस दिन पूजा करने की विधि
पौराणिक कथा के अनुसार एक समय देवराज इंद्र ने अपनी शक्ति और ऐश्वर्य के अहंकार में आकर ऋषि दुर्वासा द्वारा दी गई बहुमूल्य माला का निरादर कर दिया था जिसके पश्चात देवराज इंद्र से कुपित होकर ऋषि दुर्वासा ने उन्हें श्राप दे दिया था ऋषि दुर्वासा के इस श्राप के कारण देवताओं ने अपना बल तेज और ऐश्वर्य सब कुछ खो दिया था इस स्थिति में देवता अत्यंत निर्बल हो गए थे देवताओं की ऐसी स्थिति देखकर असुरों ने देवताओं पर आक्रमण कर दिया था देवताओं को हरा कर देत्यराज बली ने स्वर्ग पर कब्जा जमा लिया था इस बीच तीनों लोकों में राजा बलि का राज्य स्थापित हो गया और चारों ओर हाहाकार त्राहि-त्राहि मच गई थी इस स्थिति में सभी देवता एकत्र होकर भगवान श्री हरि विष्णु के पास पहुंचे और अपनी सारी व्यथा बताई जिसके बाद भगवान विष्णु ने उन्हें समुद्र मंथन करके अमृत प्राप्त करने और उसका पान कर उन्हें अपनी कोई शक्तियां अर्जित करने का सुझाव दिया लेकिन यह कार्य इतना आसान नहीं था देवता अत्यंत निर्बल हो चुके थे अतः समुद्र मंथन करना उनके सामर्थ्य की बात नहीं थी इस समस्या का समाधान भी भगवान विष्णु ने निकाल लिया उन्होंने देवताओं से कहा कि वे जाकर असुरों को अमृत व उस से प्राप्त होने वाले अमृत्व के विषय में बताएं वह उन्हें समुद्र मंथन करने के लिए किसी भी तरह से मना ले इसके बाद दोनों पक्ष मिलकर समुंद्र मंथन करें और उस से प्राप्त होने वाली मूल्यवान निधियों को आपस में बांट लें
देवताओं ने यह बात असुरों को बताई और असुरों को समुद्र मंथन करने के लिए राजी कर लिया इस विशाल कार्य को मंदर पर्वत और नागराज वासुकी जोकि नागराज शेषनाग के छोटे भाई हैं के सहारे से ही किया जा सकता था जहां पर्वत को मथनी का डंडा और वासुकी को रस्सी के समान उपयोग किया गया
देवता और दानव मिलकर समुद्र का मंथन करने लगे जहां एक तरफ असुर थे और दूसरी तरफ देव थे लेकिन इस मंथन करने से एक घातक जहर निकलने लगा और जिससे घुटन होने लगी और सारी दुनिया पर खतरा आ गया लेकिन भगवान महादेव बचाव के लिए आए और उस जहर को पी लिया और अपने कंठ में उसे धारण किया जिससे उनका नीलकंठ नाम पड़ा मंथन जारी रहा लेकिन धीरे-धीरे पर्वत डूबने लगा तभी भगवान विष्णु ने कूर्म अवतार अथवा कछुआ के रूप में प्रकट हुए और एक विशाल कछुए का अवतार लिया ताकि अपने पीठ पर पहाड़ को उठा सकें उस कछुए के पीठ का व्यास 100000 योजन था कामधेनु जैसे अन्य पुरस्कार समुद्र से प्रकट हुए और धनवंतरी अपने हाथों में कलश अमृत कलश के साथ प्रकट हुए इस प्रकार भगवान का अवतार हुआ
Date and Time
द्वादशी तिथि का प्रारम्भ 2 जनवरी 2023 सोमवार 08 : 23 शाम को
द्वादशी तिथि की समाप्ति 3 जनवरी 2023 मंगलवार 10 : 01 रात्रि तक
कुर्म द्वादशी व्रत की पूजा विधि
✅पूर्व द्वादशी व्रत के नियमों का प्रारंभ दशमी तिथि से ही हो जाता है
✅दशमी के दिन प्रातः काल स्नान इत्यादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें
✅पूरे दिन सात्विक भोजन और सात्विक आचरण का पालन करें
✅एकादशी को प्रातः स्नान ध्यान करके पूरे दिन अन्य जल ग्रहण किए बिना ही व्रत रखना चाहिए संभव ना हो तो इस व्रत में जल और फल ग्रहण कर सकते हैं
✅अगले दिन पूर्व द्वादशी के दिन भगवान कूर्म का पूजन करें
✅भगवान कूर्म के पूजन के बाद प्रसाद ग्रहण करके व्रत का पारण करें
इस दिन मंदिरों में विशेष पूजा अनुष्ठान और अभिषेक आदि का आयोजन किया जाता है
✅भगवान को चंदन फल फूल चढ़ाएं व मिष्ठान का भोग अर्पित करें
✅पूजन के समय श्लोक को वह मंत्रों का जाप करें
✅भगवान कुर्म की आराधना उपासना करें और
✅पूजन के बघवा बाद भगवान की आरती उतारे
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